तुम हँसे तो, ये जग भी हँसेगा बहुत
पाँव खाली जो देखा, डँसेगा बहुत।
तन तुम्हारा खिली पंखुड़ी फूल की
जग में आके, है तुमने बड़ी भूल की।
मन तुम्हारा तो रेशम का आँचल हुआ
जग ये काँटा है, बचना फँसेगा बहुत।
तुम तो सिन्धु रतन की, महागार हो
मोतियों की महासीपी, आधार हो।
तुम सम्भाले ही रखना रतन भाव को
जग ये तैराक बन कर धँसेगा बहुत।
तुमको मालूम क्या प्रेम क्या, पीर है
काम का पंचशर और क्या तीर है।
मन को पर्वत बनाए ही रखना मगर
जग ये मन्थन को तुमको कसेगा बहुत।