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तुलसीक प्रति / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

हे बृद्ध तपस्वी!
हृदय अहाँक पखारल छल गंगाजलसँ
तेँ गंगाजलक समान परम पावन, निर्मल,
कल-कल करैत प्रतिपल अविकल
बहि गेल काव्य-धारा अजस्र
अन्तरक हिमालयसँ शीतल,
बीतल युग-युग, नहि शीतलताक लता मुरझल,
दिन-दिन फुलाय ओ फड़य
स्वादु, सुमधुर, सौरभसँ भरल-पुरल।
हे भक्तिक अवतार!

कयल की कठिन साधना, वैदेहीपति-चरण-अर्चना,
जानकीक पद-कमल बसल जा मन-मधुकर
मधु पीबि कयल जे रस-संचय
से करय नाश भव-ताप, त्रिविध हृदयक संशय।
हे ज्ञानबृद्ध!

की सभ नहि कयलहुँ परित्याग,
रामक, अवतार पुरुषक रामक, निर्मल चरित्र
लय गेल खीचि मन कोन हेतु जे फुरल अहाँकेँ रामायण?
अछि सृष्टि एतेक विशाल
दृष्टि नहि पड़ल आन ठाँ कोन हेतु।
रामक जीवनमे दुखपर दुख अबिते रहलनि
सहिते गेलाह, उद्विग्न-चित्त मर्यादाकेर
कयलनि नहि कहिओ उल्लंघन।

की सहय पड़ल नहि दुख दारुण जीवनक
अहाँके घुलि घुलि कय।
तेँ पिघलि हृदय बनि गेल स्रोत
जे कयलक जगकेँ ओतप्रोत
जीवन-पथपर जहिया जे आयल शिलाखण्ड
तकरा निर्मम भय फोड़ि फाड़ि-बहि चलल
रामनामक सरिता, कविताक रूपमे अन्तरसँ।
हे भविष्यकेँ स्पष्ट रूपसँ देखनिहार!

कर बद्ध गिरा
संस्कृत-वाङ्मय जगतक निगूढ़तम भाव
लोक-भाषाक भूमिपर आनि, देल जे ज्ञान चक्षु
ताहीसँ चिन्तन कयल,
लहरिकय उमड़ल सिन्धु अगाध
बुद्धि-गिरिसँ से मन्थन कयल,
ताहिमे पौलहुँ जे किछु रत्न
आनि से मानसमे छिटि देल
भविष्यक पथपर बढ़ल प्रकाश
मनुजता कयलक पाबि विकास।
हे सूत्रधार नवयुवक, धन्य!

कयलक भविष्यवाणी अहाँकवाणी,
वीणक हिलि गेल तार
ध्वनिसँ झंकृत अछि दिग्दिगन्त
अपनेक चरणमे कोटि-कोटि अछि नमस्कार।