Last modified on 2 नवम्बर 2017, at 17:54

तुलसी / बिंदु कुमारी

तुलसी ऐंगना लहरावै छै,
नभ गीत हर्ष के गावै छै।
बाबूजी के चरण-रज के चंदन
पावी माथोॅ छै कण-कण।
माता गिरिजा हमरोॅ सुन्दर
नित खिस्सा कही सुनावै छेलै।
हरि कथा प्रेम सेॅ सुनथैं,
हमरोॅ मोॅन बहलै छेलै।
छैलै द्रवित वहाँ दू शिला खंड,
बड़की-छोटी दू माय अखंड।
शोभा अनुपम मन मुग्ध रहै सदा
देखी हर्षित होय मन व्यथा।
युग-युग रॉे बन्धन के कारण
भनोॅ पर पड़लोॅ छै पत्थर भारी।
चाँदनी शिखर छै बिहार घाटी मेॅ,
जगलोॅ सुवास छै झारखण्ड मांटी मेॅ।