संयत होने को तुला
इधर उठी, कभी उधर
झुकी,
बाटों पर बाट दिए
आधे, पौने,
सेर, पचसेरी
डंडी लेकिन नहीं सधी
क्लांत हाथ, तकते-तकते
आँख थकी
एक ठौर का भाग्य नहीं था-
नहीं टिकी।
संयत होने को तुला
इधर उठी, कभी उधर
झुकी,
बाटों पर बाट दिए
आधे, पौने,
सेर, पचसेरी
डंडी लेकिन नहीं सधी
क्लांत हाथ, तकते-तकते
आँख थकी
एक ठौर का भाग्य नहीं था-
नहीं टिकी।