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तूं निबिया हम पतई / चंद्रदेव यादव

फूल क सत, माटी, महुआ-रस
मस्का आउर मलाई, कचरस
एकरस कइके, खूब जतन से
गोरी तोंहके विधना रचलैं l

ई रचना में खोट न कउनो
एप्पर केहू क उठै न अंगुरी
असमाने क रंग, सुरुज क जोती
आउर जोन्हइया जेम्में
कइसे ना ऊ सुन्नर होई?
अइसन सुग्घर रूप, गढ़न पे
अदमी जान-परान लुटावैं,
सबके तूं ठेंगा पर चिरई
राखेलू, तोंहके के भावे?

तोहार लिलार पात पुरइन क
कि ह पान कि साँझ-बिहान
कि मिसिरी ह जेकरे खातिन
चिंउटी चलैं कतार-कतार l
आम क फारी अँखियाँ कि रे
दुइ गो सुतुही खोलले ओठ
जेसे झाँके मानिक-मोती
ई सुतुही से झरेला इमरित
कि माहुर क पड़े फुहार
जे पर पड़े ऊ गिरै उतान l
नैना तोहर अजब लसकाह
जे देखे ऊ सपनल जाय
मारेलू जे आँख त गोरी
दिनवों में हो जाय अन्हार,
मर-मर जालैं चतुर–गँवार l
तोहार बरौनी साही ज काँटा
जे पर मनवाँ टँग-टँग जाला
भइल बरौनी जइसे भाला l

तिल्ली फूल नियर ह नाक
जे भँवरा रस लेवे आवे
ऊ नकुरा में नथ-नथ जाय
नाक हो गइल जइसे काल
सगरो जग में मचल धमाल l

ओठ अंगारी ऊखक चिरई
औंटल दूध क साढ़ी जे पर
बून-बून रस चूअत जाय l
कि ह सुरुख लाल मिरचाई
जेके सुग्गा गवर से देखे
खाय मरीं की रहीं अनखाय l
येह रस-भरल अंगरियन भीतर
कुइयाँ कँवल कपारे ठाढ़
हँसी जोन्हइया, बात फुहार
कि आछी, परजात, आम क
कनइल, मेंहदी आउर धान क
गंध चोरा के उड़ै बयार
दिन भर होला पूछ-पुछार l
जोबना बड़का निबुला कि रे
रक्खल बेल के उप्पर जामुन
गनै न केहू गुन अ औगुन
लखे न केहू जात-कुजात
जे देखे भूले मरजाद l
देखनहरुन में केहु क छाती
भाथी नाईं फूलै-पचकै
केहु क बिहरै, केहु क दरकै
केतना जने क भगई सरकै l
भाग पराला जे उहवाँ से
ओकर नजर जाय बिछलाय
ढोंढ़ी कूँड़ गिरै अरराय l
ओसे ना निस्तार देखाला
ई हउवे मकड़ी क जाला
चिरई तोहरे कम्मर खातिन
हमरे पल्ले अच्छर नाहीं
मुँह से कुछहू कहल न जाला
के बिदमान रार भल लेई
माथा पटक जान के देई?
बहुत कहब त इहै कहब कि
कदुआ के डाँठी की नाईं
तोहार पातर ह कहिर्यांव l

कवन मरद जे आँख से बचके
जोबना तरे पिसाये आई
ढोंढ़ी बीच बुड़ुकिया खाई?
कमर भँवर में हम ना बूड़ब
कमर बवंडर, हम ना ऊड़ब l
हम माटी क धूसर लोना
नार बिना हम खाली दोना
तूं हमार संगी बन जा त
जिनगी होइ जाय रूपा-सोना l

मरद जात बस बात बनावै
बड़वरगी कइके भरमावै
साँच बात त ई हउवै कि
मरद नार के समुझै नाहीं
बस नैना-बैना पर रीझै
औगुन के अनदेखा कइके
बकर बकर बस किरिया खाला
अइसन मरद बाद में जाके
रोवै, कलपै आ पछताला l
देख सुघरई मोर न जाने
केतना मरद पटकनी खइलैं
चोरी लुक्का देख के केतना
अड़वैं आड़े खूब अघउलैं l
कवन धान क तूं हउवा होहरा
केथुआ पर तूं करेला गुमान?
अइसन तइसन मउगन के हम
ठेंगा पर राखीलऽ सुन ल्या
आपन मुँह अइना में पहिले
देखा, आउर रस्ता नापा
बड़ा बनल हउवा छैला बाँका l

चिरई हम ऊ मउगा नाहीं
तोहरे बदे जे ओरी-ओरी
फिरकी नाईं नाचत डोलै
चोरी-चोरी घात लगावै
सम्हने परले बात न निकले
घिग्घी बन्है, बोल ना फूटे l
हम त सरह बीच में तोंहके
धरबै, कान्ही लेब बिठाय l
राम के दीहल जाँगर पल्ले
सौ-सौ लोग बइठ के खाँय,
हम माटी क बेटवा चिरई
बोईं जौ, गोहूँ औ धान
जेसे महके खेत-सिवान l
मोर पसिन्ना सगरो झलकै
एही से त भरै बखार
जाँगर करे हमार गोहार
हे चिरई बइठा तू हमरे
अंगना के निबिया के डार
आउर गावा फाग-मल्हार l
हम पुरवइया के लहरा में
तोहार अँचरा ओढ़ के सुत्तीं
तूं दुलरावा, हम दुलराईं
जुग-जुग भर लेईं अँकवार l
हे चिरई जे मोरे हाथ में
दे दा अपन नरम कलाई
तोंहके चूमब, चाटब आउर
पुतरिन बीच बिठा के राखब
दूनों जून तूं पोइहा रोटी
हम पहिरब भलहीं मरकीना
तोहैं लियाइब लाल पटोरी
पहिर के डोलिहा झलमल झलमल
चाहे केहू क फटे करेजा
चाहे देह भसम हो जाय l
टिकुली, बेंदुली लगा के टीका
काढ़ के सुन्नर मुन्नर चोटी
हमरे सडए चल्या खेत में
छोट्टी बुड़ क खुरपी देबै
हम कुदार से धरती कोड़ब
तूं धाने के घास निरइहा
दूनों जने करल जाई जब
ठाठ से मिल के खेती-बारी
तब्बै जिनगी गमकी गोरी l
तोहार सुघरई होई दून
तोंहके देख के तन में हमरेव
रत्ती-रत्ती बढ़िहैं खून l

मरद हई न देख सुघरई
अइसन रिझली कि जिन पूछा
हमरो मतिया मारल गइलीं
तोहार मरम न जनली-बुझली
तोंहके अनरुच लगल होय त
मन में गरिया के चलि जइहा
हमरे सम्हने जिन कुछ कहिहा l

माटी क देवता, मोर संगी
माटी क मूरत हम दूनों
सिरी पंचमी तूं, हम पूनों,
बात खरी चाहे लागे करुई
तूं मटगरा त हम हई बलुई
तोंहके काहें गरियाइब हम?
ना हमके तूं मेहना मरला
नाहीं माई-बाप के चोरी
हमरे घर में उढ़रला
सेन्हुर देख लिलार न फोरला l
तोहार बात नीक मोंहे लागल
हमरेव मन में जगल पिरितिया
तूं मोर धड़कन, हम हई सुरतिया l
तोंहके दुलहा भेस में चाहब
केहु पूछी त ई है भाखव
तोहरे बिना ना मोर निबाह l
तूं निबिया क पेंड़ी बन जा
हम ओकर पतई आउर छाँह,
हमरे गरे क तुहीं गराँव
जियल-मरल जाई एक्कै ठाँव l