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तूतनख़ामेन के लिए-1 / सुधीर सक्सेना

सदियों सोता रहेगा

तूतनखामेन

सम्राटों की घाटी में

मौन निश्चल

स्वर्णजटित वेदी पर

स्वर्णाभूषणों से लदा-फँदा

सूर्य के आलोक में नहीं,

रत्नों की चकाचौंध में


न हवा की दस्तक

न रोशनी की गुहार

न पंछियों का कलरव

न कोई पदचाप


शताब्दियाँ बीत जाएंगी

सोते हुए तूतन खामेन को

न कोई गाएगा लोरी

न डुलाएगा चँवर

न पहुँचेगा उस तक

प्रभाती का स्वर,

खगों का कलरव,

मुरगे की बांग


सोता रहेगा

तूतन खामेन

पौ फटने

और सूरज उगने के बावजूद

निश्चल, निस्पंद

और अवाक ।