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तूतनख़ामेन के लिए-6 / सुधीर सक्सेना

तुम जिए

और ज़िन्दगी जी तुमने भरपूर

ज़िन्दगी की

आँखों में आँखें डालकर


जिए आज में

और सोची कल की

भूलकर

कि काल को भी नहीं पता

कल का पता-ठिकाना ।