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अस्वीकरण
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तूने ही / हरीश भादानी
चर्चा
तूने ही
रच दिया होता
मेरे लिए भी
एक तो
हिलकता नील दर्पण
देखता
पहचान जाता
यह हूँ मैं
फरवरी’ 82