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तूफ़ानों का स्वागत / महेन्द्र भटनागर

ऐसे छोटे-मोटे तूफ़ान
हमारे जीवन में अक्सर आते रहते हैं !
सिर के ऊपर, / दाएँ-बाएँ

मँडराते रहते हैं !

हर रोज़
सुबह क्या शाम

कभी भी छाते रहते हैं !

हम तूफ़ानों में पैदा होने वाले
तूफ़ानों में बढ़ने वाले
तूफ़ानी-जीवन के प्रेमी हैं !
क्योंकि हमारा अनुभव है —
तूफ़ानों से संकट के आधार
धरा की शैया पर
डर कर सो जाते हैं,
जैसे कोई डरपोक अँधेरी निशि में
बिल्ली की आहट को चोर समझकर
कम्बल में मुँह ढक कर सो जाता है,
उसकी घिग्घी बँध जाती है
वैसे ही संकट मुर्दा हो जाते हैं।

तूफ़ान कभी
कमज़ोरों का साथ नहीं देता है,
तूफ़ानी धरती पर
मज़बूत, साहसी इंसान जनमते हैं !
मोटे-मोटे, ऊँचे-ऊँचे,
पत्तों-फूलों वाले
पेड़ पनपते हैं !

आओ, हम सब ऐसे तूफ़ानों की
युग-पथ की उस पुलिया पर हो एकत्र
प्रतीक्षा में बैठें,
उनके स्वागत को बैठें।

जिससे आज सभी के जीवन की
जर्जरता, धोखे की टटिया,
मिथ्या विश्वासों की गिरती दीवारें,
युग-युग का संचित
रीति-रिवाज़ों का
सड़ा-गला कूड़ा-करकट
नभ में काफ़ी ऊँचे उड़ जाये !
और सभी के मन की धरती
साफ़ मुलायम
दुख-दर्द समझने वाली हो जाये !
पानी पड़ते ही
कोमल-कोमल गदकारे
पौधों से ढक जाये,
जिस-पर श्रम से थककर,
सोने को मन कर-कर आये !
फिर चाहे तूफ़ान हजारों
गरज-गरज कर गुज़रें,
क्योंकि —
बड़ी ही बेफ़िक्री का आलम होगा,
ऐसा तूफ़ानी सुख
दुनिया के किस आकर्षण से कम होगा ?

तो जर्जरता का मोह मिटा दो,
गढ़े-पुराने इतिहासों की
पुनरावृत्ति का स्वप्न हटा दो !
नया बनाओ, नया उगाओ !
जो तूफ़ानों को झेल सके,
उनकी बढ़ती काया को
खेल-खेल में ठेल सके !