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तू तो जान / ओम पुरोहित ‘कागद’

सुना है
तेरे यहां से आते है
घुमड़ कर बादल
तू ही टोरता है
जिधर जी चाहे उन्हे।
इधर देख
प्यासी हूं बरसों से
तेरे ही कारण
मगर
तूने नहीं ली सुध।
तेरे ही प्राण के
त्राण हेतु
सह लिया था मैंने
मर्यादा पुरुषोत्तम का बाण।
मैं भी यदि तेरी तरह
हो जाती उस दिन निष्ठुर
तो वही होता तेरा भी
जो आज मेरा है हाल।
जानती हूं
जिनके हाथ होते हैं हथियार
वहां नहीं होती मर्यादा
और वो नहीं जानते-कीमत प्राण की
तू तो जान।