वही हूँ मैं, वही ज़मीं, वही है माहताब माँ
बस एक गुल बहिश्त* का हुआ है ख़्वाब-ख़्वाब मां
मेरी नज़र में आज भी खिली है कहकशाँ-सी* तू
मैं यक़-क़दह* लहू तेरा, तू मेरी बेहिसाब माँ
न सोचना कि हक़ तेरा अदा न मुझसे हो सका
कि तेरे-मेरे दरमियाँ न था कोई हिसाब माँ
सफ़ेद हो चला हूँ अब तेरे कफ़न के रंग-सा
कभी उठा के देख तो यह क़ब्र की नक़ाब माँ
रखा तो होगा जेब में उसी तरह क़लम तेरा
कभी तो भेज ख़त मुझे, कभी तो भेज जवाब माँ
1- स्वर्ग
2- आकाश गंगा
3- प्याला भर