दादा की अर्थी के
अगले दो बदहवास लोगों में एक ।
तू ही तो रहा रामटेक !
गमछा ठूँसे मुँह में
हूकरी दबाते
अपनी बेहाली में पास आ चिता के
सब आग उतारी
अपलक आँखों के ज़रिये सीने में ।
फफक-फफक दुहराई
स्यार ने प्रतिज्ञा
प्रज्वलित हुआ भीतर व्यामोहों का कूड़ा
झलझला उठीं चीज़ें
माथे से चुए पसीने में ।
कितना किस हल्ले में
क्या टूटा, क्या फूटा
भावुकता के अज़ब झमेले हैं
उठ भैया
आगे की गति अपनी देख ।