तेज़ धूप में
नंगे पाँव
वह भी रेगिस्तान में,
मेरे जैसे जाने कितने
हैं इस हिन्दुस्तान में ।
जोता-बोया-सींचा-पाला
बड़े जतन से देखा भाला
कटी फ़सल तो
साथ महाजन भी
उतरे खलिहान में ।
जाने क्या-क्या टूटा-फूटा
हँसी न छूटी गीत न छूटा
सदा रह
तिरसठ का नाता
बिरहा और मचान में ।
जीना भी है मरना भी है
मुझको पार उतरना भी है
यही सोचता रहा
बराबर
बैठा कन्यादान में ।