♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
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तेरा मारिया ऎसा रोऊँ
जिसा झरता मोर बणी का
तेरे पाइयाँ माँ पायल बाजै
जिसा बाजे बीज सणीं का
थोड़ा-सा नीर पिला दै
प्यासा मरता दूर घणीं का
भावार्थ
--'तेरे सौन्दर्य से घायल होकर मैं वन के मोर की तरह रोता हूँ । तेरे पैरों की पाजेब ऎसे बजती है, जैसे सन के बीज झंकार करते हैं । अरी ओ थोड़ा-सा जल पिला दे मुझे, दूर का पथिक हूँ मैं प्यास से व्याकुल ।'