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तेरा रूप सलोना / कमलेश द्विवेदी

जिस दिन से देखा है मैंने तेरा रूप सलोना।
उस दिन से ही महक उठा है मन का कोना-कोना।

सुबह नहाऊँ तो नदिया में तो
महके जलधारायें।
महकी-महकी लगें हवायें
महकी सभी दिशायें।
तन है चाँदी-चाँदी मेरा मन है सोना-सोना।
जिस दिन से देखा है मैंने तेरा रूप सलोना।

जागा नहीं चैन से पल भर
और न पल भर सोया।
जाने किस दुनिया में रहता
हूँ मैं खोया-खोया।
लगे कि जैसे किया किसी ने मुझ पर जादू-टोना।
जिस दिन से देखा है मैंने तेरा रूप सलोना।

एक झलक ही पाकर तेरी
मैं ऐसा दीवाना।
जैसे ख़ुशबू पाकर भौंरा
झूमे, गाये गाना।
मन का मोहन तुझे पुकारे-राधे दर्शन दो ना।
जिस दिन से देखा है मैंने तेरा रूप सलोना।