तेरी लाठी का नाच सब देखें ज़मींदार
तेरे खादी के कुरते का तार-तार रे ...
तेरी आँखों में भक्ति का मदिरा गजब
तेरे रावण-से दश शीश बीस हाथ हैं
तेरी सोने की लंका के बावन महल
साँप सब फन उठाए तेरे साथ हैं
कैसे हासिल किया धन का अम्बार रे ...
तेरे माथे पे जब बट पड़ा तो लहू
पी तेरे बल्लम ही इन्सान का
तेरी टोपी हिली तो जला गाँव ही
तू अजब भूत है अपने भगवान का
तेरे कुरते की जेबों में सरकार रे ...
सो गया जागती लाठियाँ छोड़कर
सुबह सूरज को पानी चढ़ाने चला
रात-भर गाँव की लाज से खेलकर
तू जनेऊ लपेटे नहाने चला
तू करे हर फ़सल पे नया वार रे ...
लाठियाँ गाँव की जब उठेंगी तो फिर
नाच होगा तेरा बीच में गाँव के
तेरे बल्लम तेरे सामने ही तुझे
रंग दिखलाएँगे ख़ून की छाँव का
होगा तेरा भी मुर्दों-सा सत्कार रे ...