तेरी सूरत मुझे हर सू नज़र आती है,
पुकारते ही न जाने कहाँ छुप जाती है,
मत खेल आँख-मिचौली के वक़्त देख रहा है,
कहाँ से आँख उठती है कहाँ नज़र झुक जाती है,
दिलों को दिलों से बात करने दे, के मेरी आह ज़रा शरमाती है,
ना ज़ाया कर ये सिलसिला ये आरज़ू रोज़ नहीं होती,
यूं तो रोज़ आके फ़िज़ा रोज़ चली जाती है,
क़यामत से मिलने को ना जाने कब से बैठा हूँ शिव,
मग़र रूबरू होने से पहले ही वह राह बदल जाती है।