तेरी स्मित-ज्योत्स्ना के अर्णव में मैं अपना आप डुबो लूँ- तेरी आँखों में आँखें खो अपना अपनापन भी खो लूँ- बह जावे प्राणों में संचित युग-युग का वह कलुष व्यथा का- तेरे आँचल से मुँह ढँक एक बार मैं जी भर रो लूँ! 1936