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तेरी स्मित-ज्योत्स्ना के / अज्ञेय

तेरी स्मित-ज्योत्स्ना के अर्णव में मैं अपना आप डुबो लूँ-
तेरी आँखों में आँखें खो अपना अपनापन भी खो लूँ-
बह जावे प्राणों में संचित युग-युग का वह कलुष व्यथा का-
तेरे आँचल से मुँह ढँक एक बार मैं जी भर रो लूँ!

1936