Last modified on 28 नवम्बर 2009, at 04:06

तेरे ख़याल से लौ दे उठी है तनहाई / नासिर काज़मी

तेरे ख़याल से लौ दे उठी है तनहाई
शब-ए-फ़िराक़ है या तेरी जल्वाआराई

तू किस ख़याल में है ऐ मंज़िलों के शादाई
उन्हें भी देख जिन्हें रास्ते में नींद आई

पुकार ऐ जरस-ए-कारवाँ-ए-सुबह-ए-तरब
भटक रहे हैं अँधेरों में तेरे सौदाई

राह-ए-हयात में कुछ मर्हले तो देख लिये
ये और बात तेरी आरज़ू न रास आई

ये सानिहा भी मुहब्बत में बारहा गुज़रा
कि उस ने हाल भी पूछा तो आँख भर आई

फिर उस की याद में दिल बेक़रार है "नासिर"
बिछड़ के जिस से हुई शहर-शहर रुसवाई