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तेरे बिन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

बीती कितनी रातें,
सोने के दिन
मतवाले छिन,
सब तेरे बिन,
इसे कोई न जाने।

आई कितनी सुधियाँ,
उलझी अलकें
बोझिल पलकें,
आँसू ढलके,
अधर दे रहे ताने।

हिचकी बुनती सपने,
पथ है निर्जन
सोए हैं बन,
भारी है मन,
दर्द लगा लहराने।

तन की मन से,
कितनी कैसी दूरी
कब हो पूरी,
साँस अधूरी
सौ-सौ गढ़े बहाने।

बिछुड़ गए सब साथी,
पथ पर चलकर
रूप बदलकर,
हमको छलकर
सब जाने- पहचाने।
-0-[ 19-9-85:सैनिक समाचार-20-4-86]