कुवाड़ी, पैड़ा अर अगन री खोज सूं ई पैली
कदैई ही
हेत री बोळाई ही
जंबू दीप में
लोग झेल लेवता गाडा-भर भाटां री मार
डूब जाता दरिया में, व्है जाता संगसार
समाज री कळझळ ब्रथा ही
इण इळा माथै आय
प्रीत करण री प्रथा ही
म्हैं खोड़़पगौ जलम्यौ
अैड़ौ लखावै
म्हनै प्रीत आं दिनां निजर नीं आवै।