आपनोॅ गाँव केॅ भूली देखोॅॅ शहरोॅ के गुनगान करौं
माय के हुऐॅ पारलोॅ नै तेॅ मौगी के सम्मान करौं
देखोॅ पेटोॅ लेॅ शहरी के तलवा केॅ सहलाय छी
तोहरोॅ डेंगिया खूब पूजै छी, आपने डेंगिया ढाय छी
हम्में तेॅ गाँवोॅॅ के गँवई ‘रुपसा’ हमरोॅ गाँव हो
रोटिये फेरोॅ मेॅ नै पड़लोॅ घर पर हमरोॅ पाँव हो
चार ठो पैसा लेॅ गाँवोॅ केॅ छोड़ी केॅ पछताय छी
तोहरोॅ डंेगिया खूब पूजै छी आपने डेंगिया ढाय छी।
गिरतेॅ होतोॅॅ छप्पर-देहरी झोॅर-हवा में भाय हो
कोय नै हमरा खबर करै छै, देलेॅ छै अनठाय हो
की करबोॅ, रोजी केॅ छोड़ी, गाँव केना केॅ जाय छी
तोहरोॅ डेंगिया खूब पूजै छी, आपने डेंगिया ढाय छी।
औसरा पर के संदुक बड़का कोय तेॅ लइये गेलोॅ होतै
बाबा के बनबैलोॅ छेलै, हुनकोॅ आतमा कत्तेॅ रोतै
मन केॅ कोॅल पड़ै नै, मन केॅ कत्तो भी समझाय छी
तोहरोॅ डेंगिया खूब पूजै छी, आपनोॅ डेंगिया ढाय छी।
तुलसीचैरा रोॅ तुलसी के सूखी गेलोॅ जोॅड़ होतै
एक्को टा आदमी के बिना घोॅर भुताहा रं होतै
सब्भे तेॅ रेॅनेॅ बेॅनेॅॅ छैµसोची केॅ पछताय छी
तोहरोॅ डंेगिया खूब पूजै छी, आपनोॅ डेंगिया ढाय छी।
केहनोॅॅ होतै गोपी काका, केहनोॅ छोटका बाबा हो
केहना रहती होती चाची आरो आबिद चाचा हो
देखै लेॅ पंचकौड़ी दा केॅ तरसी-तरसी जाय छी
तोहरोॅ डेंगिया खूब पूजै छी, आपनोॅ डेंगिया ढाय छी।
खूब बियैतेॅ होतै अभियो मंडल का के गाय तेॅ
कथी लेॅ बेचियो देलकै नी है रं गाय केॅ माय तेॅ
कंटोली रोटी में दूधो पनछेछरोॅ रँ खाय छी
तोहरोॅ डेंगिया खूब पूजै छी, आपनोॅ डेंगिया ढाय छी।
चानन नदी मेॅ हौ छप-छप, पानी चुआंड़ी के पीबोॅ
अट्ठागोटी खेलै लेली चिकनोॅ पत्थर केॅ चुनबोॅ
बहियारोॅ मेॅ हेनै भटकै लेली आबेॅ ललाय छी
तोहरोॅ डेंगिया खूब पूजै छी, आपनोॅ डेंगिया ढाय छी।