सींच दिये घर उपवन हमने, जब फूल सयाने होंगे !
महके जिनसे जीवन अपना,नित तौर सिखाने होंगे ।
तिनके तिनके जोडे़ जिसमें,शीतल छाया पाना ग़र,
बहती धारा अनुकूल चलें,सब स्वप्न सुहाने होंगे ।
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खोट निकाले माटी रूँधे,तभी निखरते जीवन घट,
नाच रहा यों समय चक्र है,नित चाक चलाने होंगे ।
पौध लगायी कूटनीति की, डाले अनगिन रोडे़ जो,
व्यर्थ कल्पना सुख की चाहत,परिणाम पुराने होंगे ।
पानी सिर से ऊपर है ये,प्रेम मर्म कथ्य न केवल,
संक्रमित यहाँ जन जीवन को,अब हमें बचाने होंगे ।