छोड़ी तात अरुमात, भ्रात सुत सम्पति नारी। जाति पाँति गुन ज्ञाप्ति, भाँति कुश वर्ण विचारी॥
लोक-लाज गृह-काज, साज समाज वडापन। निर्धन निन्दय निहाल, वहुरि जागे सव सज्जन॥
पाँचहु को परपंच तजि, हरीनाम निज हृदयधरु।
धरनी चाहे प्रेम सुख, प्रभु-सनेही नेह करु॥15॥