त्यू तुम्ह कारन केसवे, लालचि जीव लागा।
निकटि नाथ प्रापति नहीं, मन मंद अभागा।। टेक।।
साइर सलिल सरोदिका, जल थल अधिकाई।
स्वांति बूँद की आस है, पीव प्यास न जाई।।१।।
जो रस नेही चाहिए, चितवत हूँ दूरी।
पंगल फल न पहूँचई, कछू साध न पूरी।।२।।
कहै रैदास अकथ कथा, उपनषद सुनी जै।
जस तूँ तस तूँ तस तूँ हीं, कस ओपम दीजै।।३।।