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त्योहार / रामदरश मिश्र

सुबह शाम गूँजता रहता था आँगन
चिड़ियों की चहचहाहट से
वे आँगन में रखे दाने चुगती थी
पानी पीती थीं
आँगन में स्थित
पेड़ों की इस डाल से उड़ कर
उस डाल पर बैठती थीं
पंखों में नृत्य की लय भरती हुई
सहजन, अमरू, हरसिंगार
अपने-अपने समय में फूल कर
चिड़ियों की चहक में
अपनी महक मिलाते रहे

अब कई दिनों से आँगन उदास है
मांगलिक त्योहार आ रहा है
कई दिन पहले से ही
पटाखों का विषैला शोर
विषैले धुएँ के साथ
उत्पात मचा रहा है आस-पास चारों ओर
डर कर चिड़ियँ कहीं चली गई हैं

कैसी विडंबना है कि
इस एक दिन के त्योहार ने
मेरे आँगन में
रोज-रोज गुंजित रहने वाले
त्योहार को निष्कासित कर दिया है यहाँ से
और मैं उसकी प्रतीक्षा में
रोज़-रोज़ बैठता हूँ आँगन में।
22.10.2014