त्रासदी नेपथ्य में है
मंच पर प्रहसन
अट्टहासों का सफल
अभिनय करें क्रन्दन
क्रुद्ध पीढ़ी ने
समय की देह
कुछ ऐसे छुई
दूर तक विश्वास की
नंगी त्वचा
झुलसी हुई
बहुत गहरे तक चुभे
संत्रास के दंशन
मुस्कराहट
औपचारिकता निभाकर
अनमनी-सी
अब दबावों से,
तनावों से
मची है सनसनी-सी
छिपाना अवसाद का
दैनिक हुआ मंचन