माँ
पिता
और
भाई के
त्रिभुज के बीच
रेखाओं से टकराती
एक बिंदु-सी
बेटी,
आज भी
तलाश रही द्वार ।
बेजान नहीं
जबकि
उसके पंख ।
माँ
पिता
और
भाई के
त्रिभुज के बीच
रेखाओं से टकराती
एक बिंदु-सी
बेटी,
आज भी
तलाश रही द्वार ।
बेजान नहीं
जबकि
उसके पंख ।