सब पे आती है सब की बारी से मौत मुंसिफ़ है कम-ओ-बेश नहीं ज़िन्दगी सब पे क्यूँ नहीं आती कौन खायेगा किसका हिस्सा है दाने-दाने पे नाम लिखा है 'सेठ सूदचंद मूलचंद आक़ा' उफ़! ये भीगा हुआ अख़बार पेपर वाले को कल से चेंज करो 'पांच सौ गाँव बह गए इस साल'