कितने ही द्वार
बड़े उद्गार से
तोड़कर निकले
तन्द्रा नहीं
हम भँवर थे
सब झकझोर कर निकले
न ज़मीन मिली
न नभ अपना
हम त्रिशँकु संसार छोड़कर निकले
कितने ही द्वार
बड़े उद्गार से
तोड़कर निकले
तन्द्रा नहीं
हम भँवर थे
सब झकझोर कर निकले
न ज़मीन मिली
न नभ अपना
हम त्रिशँकु संसार छोड़कर निकले