लूट गयी कौड़ी कीमत में,
मानव मन की प्रीत!
थके प्रणय के गीत!
नंगे पन का नृत्य अनोखा-
क्या मथुरा क्या काशी,
रति-पति-क्रीड़ा धरम कोट में
रचा रहे सन्यासी;
होली ईद दिवाली ऐसे-
पर्व हुए भय-भीत!
कुल मर्यादा गयी रसातल-
तरी बही मनमानी,
तामस-तप से तमस कुंड को
धधकाए वो ज्ञानी ;
कहाँ कौन किसको समझाए-
सभी हुए विपरीत!
घर-परिजन सब रिश्ते-नाते
दग्ध दाघ की धार,
तनवंगी हो गए गाँव के-
धर्म नीति औ प्यार ;
राजनीति की राहें समतल-
क्या दुश्मन क्या मीत!
जागो युवा मातु-भूमि के
क्या सपने में खोए,
चौर द्वार से घुसकर कोई
अपनी मूँछ न धोए ;
खुशियाँ गाँव नगर में छाए-
गूंजे मन संगीत!
लूट न जाए कौड़ी में ही
मानव मन की प्रीत!
थके प्रणय के गीत!