Last modified on 23 अक्टूबर 2013, at 21:05

थके हुए सब / कुमार रवींद्र

थके हुए सब
सब उदास हैं - कैसे ये दिन
 
कहाँ गईं वे
पुरखों ने बीजीं थीं कल
फागुनी हवाएँ
सूख गईं वे -
अमृतकुंडों से निकलीं थीं
जो धाराएँ
 
राख हुए सब
पेड़-गाछ हैं - ये कैसे दिन
 
गये रामजी थे
कल वन को
लौट न पाये
दीख रहे हैं
सोनहिरन के
घर-घर साये
 
अंधों के
चल रहे रास हैं - ये कैसे दिन
 
महासभा में
शाह कर रहे
अस्त हुए सूरज की पूजा
शहज़ादों को
दूर देश का
आधा-परधा सपना सूझा
 
होरी-धनिया के
उपास हैं - ये कैसे दिन