थक गये हैं हम,
हमारे प्यार के मौसम!
तुम्हारे मान की, मनुहार की यादें नहीं थकतीं,
जब खुद से, उम्र की दोपहरियों की बात करते हैं,
तुम्हारे साँझ से अभिसार की यादें नहीं थकतीं,
बहारें लौट पाती,, हम उन्हें आवाज दे देकर बुला लेते,
तुम्हें दो फूल भेजे हैं
समझ लेना व्यथा बाकी...!
किधर गयी वो तुम्हारी हथेलियों की धूप?
वह हमारी हथेलियों पर फैली चाँदनी किधर गयी?
जब मिली रोशनियाँ ही मिलीं तुमसे,
उजली रातों की गिनतियों में ही, कल पूरी रात बीत गयी,
हमारे सारे के सार क्षितिज
तुम्हारे प्यार से प्रकाशित रहे,
और हमारी आँखों में
तुम्हारे प्यार की ऊर्जा भी अक्षितिज बनी रही!