थार का विस्तार सूना
दूर तक कोई नहीं पद-चिन्ह
-कभी होंगे भी तो उन पर
छा गई है रेत
उन को कौन अब जाने !
किन्तु इस से नहीं कैसे हो गयी
जो मँडी थी
वह छाप ?
तुम भी, थार,
क्या गये उस को भूल ?
सच कहो, वह कहीं
मन में तुम्हारे गहरे
अंकित नहीं है ?
(1982)