Last modified on 24 जनवरी 2009, at 21:16

था कहा "प्रिये! लहरते सुमन ज्यों फ़ेनिल-सरिता बरसाती / प्रेम नारायण 'पंकिल'

 
 था कहा "प्रिये! लहरते सुमन ज्यों फ़ेनिल-सरिता बरसाती
आनन्द-गीत गा रहा भ्रमर कुहुँकती कोकिला मदमाती ।
मेरे जीवन की चिर-संगिनि परिणय-पयोधि उफ़नाता है ।
आकाश उढ़ौना सुमन बिछौना तृण-दल पद सहलाता है ।
आओ हम अपने प्राणों को खग के कलरव में लहरा दें ।
द्रुत पियें अमर आसव वासंती मार पताका फ़हरा दें ।
तारुण्य-तरल ! है परम विकल बावरिया बरसाने वाली-
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवनवन के वनमाली ॥45॥