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दंगा और दादी माँ / मीठेश निर्मोही
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अंगीठियाँ, चूल्हे अनसुलगे ही रहे
सुलगता रहा दादी माँ का दिल
जब रह-रह कर
उठा था धुआँ
मेरे शहर से।