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दण्ड / नेहा नरुका

 

उनका एक बेटा
मर गया था ।

पूरा जीवन उसे याद करके
रोज़ सुबह रोईं वे
पर जब भी सोतीं
सपने में उसे ज़िन्दा पातीं ।

जैसे ही सपना टूटता
बेटा फिर मर जाता ।
इस तरह रोज़ बेटा मरता
रोज़ वह रोतीं ।

एक दिन वे भी मर गईं !
वे भी अपने उस
बेटे की तरह थी ।

पर मैं
उनकी तरह नहीं हूँ !