वो देखो वहाँ दफ़न हूँ मैं
क्या लगता वहाँ मगन हूँ मैं ?
पढ़ रहा ये जग
दुविधाएँ मेरी
तमन्नाएँ मेरी
निराशाएँ मेरी
इन सब से सनी — कविताएँ मेरी ।
चाह कर भी समझा नहीं पाता हूँ मैं
असली मकसद मेरा
उससे उपजा दर्द मेरा
असली कारण मेरा
उससे उपजा आचरण मेरा ।
क्योंकि ... मौत में इतना मसरूफ़ हूँ मैं।
वो देखो वहाँ दफ़न हूँ मैं
क्या लगता वहाँ मगन हूँ मैं ?
अभी कल की ही तो बात है —
सोते, उठते, बैठते, जगते
हर वक्त जुमले बुनता था मैं
अभी कल की ही तो बात है —
दोष, जोश, क्रोध, विरोध
हर हाल में लिखता था मैं ।
अभी कल की ही तो बात है
कि कबीर को पढ़ता था मैं
अभी कल की ही तो बात है
कि ग़ालिब से जलता था मैं ।
आज —
इर्द ग़ालिब गिर्द कबीरा ?
बीच का अनजान फ़कीरा हूँ मैं...
वो देखो वहाँ दफ़न हूँ मैं
क्या लगता वहाँ मगन हूँ मैं ?