Last modified on 30 जनवरी 2017, at 14:33

दफ़्तर से विदाई / योगेंद्र कृष्णा


इतनी आसानी से
नहीं हो जाता कोई विदा

वह थोड़ा-थोड़ा
जरूर रह जाता है
तुम्हारे साथ

अदृश्य और निराकार

और तुम भी
थोड़ा ही सही

चले जाते हो
दूर तलक साथ-साथ उसके
जो हुआ है
अभी-अभी तुमसे विदा...

(31 दिसंबर, 2014)