दयाशंकर का कहना है
ताज्जुब की बात है
पहाड़ पर पहुँचते ही कुछ लोग
फ़र्क भूल जाते हैं आदमी और घोड़े में
वे भूल जाते हैं
धरती और आसमान का अन्तर
दयाशंकर का कहना है
जाड़ों में बर्फ़ जब
घाटियों में खदेड़ती है हमें
आसमान से पहाड़ पर
देवतागण उतरते हैं
और फिसलते हैं हमारे सपनों में
दयाशंकर का कहना है
ज्ञान और सामर्थ्य के इन्हीं सीमान्तों से
शुरू होता है
आदमी का बैकुण्ठ ।