(पुत्र हेमंत की याद में)
तभी से दरवाज़ा बन्द है
कोई खोलता नहीं है
किन्तु लगता है
तुम कमरे के भीतर होगे
अपने साथ ताश खेलते हुए
या टी.वी. पर मैच देखते हुए
और अपने दल के हारते होने पर भी
निश्ंिचत हँसी हँसते हुए
या शीघ्र ही अपने द्वारा निर्देशित
और अभिनीत होने वाले
नाटक से गहन संवाद करते हुए
या कोई कहानी लिखते हुए
या चुपचाप सो गये होगे
घर में क्या हो रहा है इससे बेख़बर
या अभी अभी आवाज़ दोगे
”माँ, एक कप चाय चाहिए“
और माँ कहेगी-
”हेमंत बेटा, नीचे आ जाओ“।
-4.10.2014