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दरिंदगी से न मिलती निजात है, यारो ! / श्याम कश्यप बेचैन

दरिंदगी से न मिलती निजात है, यारो !
हरेक दिन यहाँ जंगल की रात है, यारो !

खुलेगा उस पे कटोरों का कारख़ाना इक
दबा मशीन के नीचे जो हाथ है, यारो !

किसी को बूँद मयस्सर नहीं है पानी की
किसी के हौज में आबे-हयात है, यारो !

किसी के वास्ते दुनिया की हर ख़ुशी ग़म है
किसी के वास्ते ग़म ही निशात है, यारो !

सबूत ढूँढिए मत कीजिए दफ़ा क़ायम
हमारी ज़ात ही मुजरिम की ज़ात है, यारो !

यहाँ पे बात न करना वतनपरस्ती की
यहाँ पे मुल्क से बढ़ कर जमात है, यारो !