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दर्द का गौहर मिरे दिल में सजाया शुक्रिया / रविकांत अनमोल

दर्द का गौहर मिरे दिल में सजाया शुक्रिया
मुझ को भी दिलगीर का रुतबा दिलाया शुक्रिया

ज़िन्दा रहने का सलीक़ा और मर मिटने का फ़न
ज़िन्दगी तूने मुझे क्या-क्या सिखाया शुक्रिया

ए ज़माने तूने मेरी चाहतों को बारहा
आज़माया आज़माया आज़माया शुक्रिया

होते होते हो गया कुन्दन मिरा बेनूर दिल
हिज्र में तूने इसे ऐसा तपाया शुक्रिया

कोई भी शिकवा नहीं तुझसे मुझे मेरे ख़ुदा
शुक्रिया तूने मुझे जो भी बनाया शुक्रिया