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दर्द की झंकार / रमेश रंजक

झील का चंचल अचंचल
कर गया घायल
कूल दुहरा आँख का काजल ।

मन्त्र के मारे बिचारे
वृक्ष संज्ञाहीन
लग रहा मौसम तुम्हारे
विरह में ग़मगीन

कमर तक साभार झुककर
हाँफ़ती, पस भर
छाँह प्यासी पी रही है जल ।

घाटियों में बज रही है
दर्द की झंकार
थिर मुकुर में काँपती है
दूधिया मनुहार

बुझ रहा नीलाभ अम्बर
छन्द-सा सुन्दर
गल रहा है वायदा पल-पल ।