क्या पढें दर्द की व्याकरण,
ज़िंदगी है कटा अवतरण ।
रूप का, आयु का, साँस का,
आज होता न एकीकरण ।
मोह किससे कहाँ तक रहे ?
बँध न पाते नयन से चरण ।
सत्य की बात कैसे कहें ?
आवरण ही यहाँ आवरण ।
जो भटकते रहे उम्र भर,
आँकते हैं वही आचरण ।
वे अहम् के गगन छू रहे,
पाँव से कट चुकी है धरणि ।
रेत है, शंख है, आदमी -
धुँध के बीच खोयी किरण ।