फेंके हुए लफ़्ज
धूप की चुन्नी ओढे़
अपने हिस्से का
जाम पीते रहे
सूरज खींचता रहा
लकीरें देह पर
मन की गीली मिट्टी में
कहीं चूडि़याँ सी टूटीं
और दर्द के टुकडे़
बर्फ हो गए...
फेंके हुए लफ़्ज
धूप की चुन्नी ओढे़
अपने हिस्से का
जाम पीते रहे
सूरज खींचता रहा
लकीरें देह पर
मन की गीली मिट्टी में
कहीं चूडि़याँ सी टूटीं
और दर्द के टुकडे़
बर्फ हो गए...