दुनिया से हमें मिले कई दर्द के दस्तावेज़ों में,
एक समूचा दस्तावेज़ तुम्हारे नाम पर है,
समाज ने तो नाम दिये थे सभी इन छोटे-बड़े रिश्तों को,
उनका गुमनाम या खुलेआम अपमान तुम्हारे नाम पर है,
सम्मानित नहीं रहे खून, मर्यादाएँ, मूल्य, जनाजा धर्मों-ईमान का है,
देख लें किस मोड़ पर है, किस मुकाम पर है?
कुछ फर्ज था इंसानियत का, कुछ तालीम और तहज़ीब के कर्जे थे,
वक्त के साथ तुमने इनको एक-एक कर गिनकर भुला दिया,
भले ही उन्हें निभाया नहीं, सम्बन्धों का निर्वाह नहीं किया,
तुमने उनका होना तक नकार दिया, इनकार किया,
जिनने तुम्हें जीते-जी खुशियाँ दीं, वसीयतों तक में खुशियाँ बाँटीं,
उन्हें तुमने बदले में क्या दिया, उनसे किस बात का बदला लिया?