जाने-बूझे कर बैठा हूँ मैं यह गलती आज,
सोया है जो दर्द उसे ही दे बैठा आवाज,
जिसे कुम्हारिन कुदरत ने फुरसत में ढाला है,
वही चांदनी हिन्दुस्तानी विधवा बाला है,
उजले कपड़े वाले सामाजिक अपराधी मेघ।
गिरा रहे हैं जिस पर अपने षडयन्त्रों की गाज,
सोया है जो दर्द उसे ही दे बैठा आवाज,
उतरे-उतरे ऐसे मुंह-सा लगता है आकाश,
जैसे शिशु की बीमारी पर कोई पिता उदास,
हवा बावरी बहिन सरीखी खोज रही है वैद्य।
समय चिकित्सक अर्थ लालची करता नहीें इलाज,
सोया है जो दर्द उसे ही दे बैठा आवाज,
तारे, जैसे गगन-दरी पर गये मंजीरे टूट,
झींगुर ऐसे चुप हैं मानो जाय भजनिया रूठ,
सन्नाटा ऐसा है जैसे प्रजातन्त्र के बाद।
किसी देश की कायर जनता सहले सैनिक राज,
सोया है जो दर्द उसे ही दे बैठा आवाज।