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दर्द देवयानी के / राजेश श्रीवास्तव

दो कथ्य हैं मेरी इस कहानी के
कर्त्तव्य कच के दर्द देवयानी के।

कभी टूटा हूँ कभी तोड़ा गया हूँ
शब्द-सेतुओं से फिर जोड़ा गया हूँ
एक उनकी मरुथली प्यास की खातिर
जीवन भर रेत-सा निचोड़ा गया हूँ
ये शीर्षक है पुरु के बुढ़ापे का
और संवाद ययाति की जवानी के,
दो कथ्य हैं मेरी इस कहानी के
कर्त्तव्य कच के दर्द देवयानी के।

ये प्रसंग जीवन-पर्यन्त रहेगा
अश्रुपूरित हर उर्मिला बसंत रहेगा
फिर कचोटेंगी प्राणों को स्मृतियाँ
मुद्रिका दे भूलता दुष्यन्त रहेगा
है कथानक वही सदियों पुराना ये
विष भाग में मीरा-सी दीवानी के।
दो कथ्य हैं मेरी इस कहानी के
कर्त्तव्य कच के दर्द देवयानी के।