पीर की बीन पर उंगलियाँ मत धरो
आँसुओं का कलेवर निखर जायेगा
दर्द निःशब्द बनकर पिकी-
वेदना के स्वरों में सँवर जायेगा
जिन्दगी कट गयी, शेष दो दिन रहे
प्यार के बोल तो रह गये अनकहे
तीर पर मुग्ध होना न भाया कभी
हँस, नियति-निर्झरी के थपेड़े सहे
टुक अभी नींद आयी, न अलाप लो
अश्रु की सेज का सुख बिखर जायेगा
स्वप्न देखे बहुत, स्वप्न तो स्वप्न हैं
सत्य तो राख की ढेर में दफ्न है
जिन्दगी के खुल पृष्ठ लपटें पढ़ें
तीर पर आ थमे चार कंधों चढ़े
पाँव की धूल तो व्योम का ग्रास है
क्या पता कारवाँ कब ठहर जायेगा